तुम याद हमें कर लेते हो, पर जान नहीं हम पाते हैं, है प्यार तुम्हारा आधा सा, पर मान नहीं हम पाते हैं,
तुम चाताह को उकसाते हो, फिर दूर दूर हो जाते हो, हो प्यार तुम्हारा कितना भी, पर दिखा नहीं तुम पाते हो,
बिन कहे समझ लें हर बात तुम्हारी, ये हो जाये तो अच्छा है, फिर भी सुनने का स्वाद है जो, उसका सुख भी तो सच्चा है,
हैं याद मुझे वो जगड़े सब, जब बात नहीं हम करते हैं , मन में रहती थी चाह छुपी, कुछ कहने सुनने को मरते हैं,
प्यार हो और एक सोच भी हो यह नहीं सदा जरूरी है , अलग मत में एक सामंजस्य बने, बस इतनी मंजूरी है ,
आधा नहीं पूरा प्यार है ये, जो एहसासो में आता है, कहे बिना ही दिल से मिलता है और मन को मेरे भाता है,
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“बिन कहे समझ लें हर बात तुम्हारी, ये हो जाये तो अच्छा है, फिर भी सुनने का स्वाद है जो, उसका सुख भी तो सच्चा है,”
सुन्दर पंक्तियाँ!
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धन्यवाद प्रतीक 👍
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