मन के मुताबिक काम नहीं है, काबलियत भर दाम नहीं है,
सारा दिन दफ़्तर में करें चाकरी, घर में भी आराम नहीं है,
किराया भरना, बिल देने हैं, खर्चो पर कोई विराम नहीं है,
चलती चक्की हर महीने , रुक जाने का कोई नाम नहीं है,
दफ़्तर में रोज जंग नई सी, बिन काम की कुस्ती होती है,
बातों के महल ही बनतें है, बातों से तुस्टी होती है,
ऑफिस में राजनीती करने वालों की ही तो मस्ती होती है,
कामगार सब पिसते हैं, जिनकी तनख्वाह भी सस्ती होती है,
रोज ढूंढ़ते नई नौकरी, जो भविष्य संभाल दे अपना,
काम सही हो तो पूरा हो ,पीछे छूट गया जो सपना,
रोजगार है पर मज़बूरी सा, हाथ भरे हैं मन भारी सा,
चाहत थी दुनिया बदलेंगे, काम मिला है लाचारी सा,
स्वरोजगार का सोचा तो पर साहस जुटा नहीं पाए,
साल माहिनो के खर्चो से, पीछा छूटा नहीं पाए,
मन मरता है, पर डरता है, मन को मना नहीं पाए,
बिन साहस, नहीं मिलेगी राहत, इतना सुना नहीं पाए,
एे काश सभी को मिल जाता, वो रोजगार जो मन भाता,
कर्जे किस्तें भी चुक जाती, और कुछ आगे को बच जाता,
दुनिया भी बदल खूब देते , सब सही जगह तक जा पाते,
नाम ना चाहे होता पर, खुश रोजगार से रह पाते !!
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Dedicated to all who are stuck in less then rewarding jobs, but can’t get out due to financial obligations.
Thanks for reading.
Stay happy stay healthy.. !!!