कुछ धेय चुने थे जीवन के,
कुछ हिस्से थे मेरे मन के,
करना क्या था और कैसे था,
ये सब निर्धारित जैसे था,
पर नियति पर जोर न चल पाया,
मेरे मन जैसा न कल आया,
कोशिश फिर भी जारी रहती,
एक आशा अब भी प्यारी रहती,
अनजान मार्ग आते सम्मुख,
कुछ खुशियाँ और कुछ लाते दुःख,
रुक जाना कोइ उपचार नहीं,
मन कुंठित है लाचार नहीं,
बस हर रोज बढ़े आगे,
मन चाहे हर दिन न लागे,
बदले हैं मार्ग पर धेय नहीं,
झूठी उपलब्धियों से नेह नहीं,
पाकर जिनको मन भारी है,
और निभाने की लाचारी है,
ये बोझ उठाकर बांहों में,
चलते अंजानी राहों में,
विश्वास ह्रदय में बांधेंगे,
एक दिन धेय को साधेंगे !
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Thanks for reading.. !!
Stay happy keep reading .. !!
निराशा में आशा का दीप है ।
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धन्यवाद
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निराशा में आशा का दीप है
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Love and strength to you.
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Thanks dear
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बहोत सुंदर कविता,
अभी वक़त लगेगा ज़िंदगी को गुज़र जाने में,
चलो कलम उठाते हैं कुछ कर जाने में।
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Thanks
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