सूरज है रौशन पर, दूर अंधेरा नहीं होता,
आजकाल, जागने से भी सवेरा नहीं होता,
मोबइल में अलार्म, टुनटुना कर कई बार रोता है,
की उठो तो सही, इतनी देर तक क्या कोई सोता है,
हर रोज, एक नये दिन का आभास तो होता है,
पर नये दिन में करने को, कुछ खास नहीं होता है,
कई बार पोधों को मिलते हैं, पत्तियों को गिनते हैं,
और खुद से बातें करते हुए, कई ख्याल बुनते हैं ,
यदि सारी योजनाओं को अंत में अपूर्ण ही रहना था,
तो उनके पाने के लिए इतना कष्ट क्यों सहना था,
जैसे की जीवन में अर्थ कुछ कम होने लगे से हैं,
पर इस सब के बीच भी कुछ सपने जगे से हैं,
सवेरे में जब हम अलार्म को आगे बढ़ाते होते हैं,
ऐसा नहीं की हर उम्मीद छोड़ कर बेसुध सोते हैं,
अँधेरे ने घेरा है तो कुछ रौशनी भी ढूंढ़ते रहना,
सूरज ना मिले तो किसी चाँद को अपना कहना,
कुछ उमीदें रोशन रखना अंधेरों में भी,
क्यूंकि यह बादल छटेंगे कभी न कभी,
©सरिकात्रिपाठी
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Thanks for reading..!!
Keep patience..
Stay healthy, stay happy.. !!
बहुत ही खूबसूरत !!!
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धन्यवाद 🙏
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बहुत खूबसूरत रचना वर्तमान को लक्षित कर लिखी गयी।
उम्मीद ही है जो चिंता दूर कर रहा है
वरना हिम्मत कहा ये देखकर
कि रोज कोई न कोई मर रहा है।
कुछ उमीदें रोशन रखना अंधेरों में भी,
क्यूंकि यह बादल छटेंगे कभी न कभी,
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बहुत ही सुंदर और सराहनीय लयबद्ध कविता👌👌
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Dhanyawad 🙏
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