विडिओ कॉल ने बड़ी मुश्किल में डाल दिया,
जुदाई के गम का सारा अर्थ ही निकाल दिया,
वो सामने तो होते हैं, पर दिल भरता तो नहीं,
रोज मिलने जैसा तो है, पर मिलना तो नहीं,
सुबह की चाय और रात का खाना भी यूँ तो साथ है,
पर दोनों के प्याले और थाली में कुछ अलग सी बात है,
पहले के ज़माने में दिल भर के रो तो थे पाते,
आज झूठी खुशी से जैसे खुद को बस बहलाते,
दो नाव में जैसे साथ बहती हुई शाम सजती है,
पर दूर से झरना देखने से प्यास कब बुझती है?
तकनिकी में सुविधा तो है पर सच्चा आभास नहीं,
तात्कालिक साधन तो है, घर वाला एहसास नहीं,
जीवन के इस रूप को सामान्य नहीं कह सकते,
हमेशा तो विडिओ कॉल के साथ नहीं रह सकते… !!!
©सरिकात्रिपाठी
Thanks for reading my poem..!!
रोज मिलने जैसा तो है, पर मिलना तो नहीं
पहले के ज़माने में दिल भर के रो तो थे पाते,
आज झूठी खुशी से जैसे खुद को बस बहलाते,
बहुत अच्छा लगा 👌👌🌻
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धन्यवाद
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बहुत ख़ूब ,,👌👌👌
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Nice poem 👌👌
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Thanks 😊
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