हाय ये राजनीति की मुश्किलें…….
एक युवा के नेता हो जाने की मुश्किल है,
नैतिकता के पुर्जों को बचाने की मुश्किल है,
आसान होता है, खाली हाथ लेकर जाना,
राजनीति में खाली हाथ रह पाने की मुश्किल है,
हाय ये राजनीति की मुश्किलें…….
राजनीति के दलदल में ज्यूं धसते जाते है,
अपने साथ साथ परिवार भी फसते जाते हैं,
जितना भी चाहे सब सही सही करना,
एक एक गलतियों के फंदे कसते जाते हैं,
हाय ये राजनीति की मुश्किलें…
सिपाही जो देश के लिए सीमा पर लड़ते हैं,
दुश्मन को जानते हैं, देश के लिए मरते हैं,
नेता सही हो तो, अपनों से ही खतरे तमाम,
जान बचाने के लिए फिर क्या नहीं करते हैं,
हाय ये राजनीति की मुश्किलें……
अपराध करना रोज की बात बनी हुई ,
न्याय के कांटे की सुई एक ओर तनी हुई,
सही गलत की बहस रोज होती रहे,
सही न्याय की कमी रोज ही बनी हुई,
हाय ये राजनीति की मुश्किलें……….
वोटरों पर आधारित यह लोकतंत्र होना था,
जनता और देश का कल्याण ही मंत्र होना था,
फिर लोभ और दंभ ने क्यूँ घेर लिया आकर,
जिससे बचने के लिए ही तो स्वतंत्र होना था,
हाय ये राजनीति की मुश्किलें……..
यही है, यही होता है, यही होता रहेगा,
देश इन भ्रांतियों को कब तक ढोता रहेगा?
भ्रष्टाचार समान्य है ये मानता रहेगा और,
आजादी के बाद भी, आजादी को रोता रहेगा?
हाय ये राजनीति की मुश्किलें….
©सरिकात्रिपाठी
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