एक बीज बो दिया और कोपल का इंतजार शुरू हुआ,
मिट्टी में दबे बीज से, उमीदों का बाजार शुरू हुआ,
दो पत्तियों में प्राण से, दरख़्त का आधार शुरू हुआ,
ज़मीन और जल दिया, माली का उपकार शुरू हुआ,
कुछ अधूरे स्वप्न, कुछ अधूरे फ़र्ज,
नन्ही सी जान पर जाने कितने कर्ज,
आशाएं बंध गई, रूप सुन्दर हो, वृक्ष फलदार भी
बड़े होने पर छाया भी दे और पुष्प खुशबूदार भी,
नन्ही जान ने चाहा कुछ और नहीं, बस प्यार ही,
अपेक्षाओं की भीड़ में, ढूंढ़ता माली का दुलार भी,
सूरज जिस ओर रहा, उसने डालें उस ओर फैला दी,
गर्माहट की अपनी चाहत, इस तरह उसने दिखला दी,
यह जाना नहीं की इससे छवि टेड़ी हो सकती उसकी,
माली द्वारा तय दिशा, इस प्रयास में खो सकती उसकी,
माली ने उसकी डाल और जड़ की दिशा सुधारने के लिए,
कुछ काटा कुछ छांटा, अवरोध कर दिशा परिवर्तन किये,
अपनी चाहतों को त्यागकर पोधा, माली के मन सा,
खुद को ढालने लगा उसमे, जो था कर्ज का जीवन सा,
इस प्रकार संरक्षित, वह बड़ा दरख़्त हो जब साकार हुआ,
अपेक्षाओं का वास्तविक्ता से तब साक्षात्कार हुआ,
छाया तो खूब हुई, पर फल नहीं आते थे,
कुछ तो बात थी, फूल बहुत जल्दी मुरझाते थे,
बेमन सा आंगन में खड़ा, सबकी आंखों में ओस बना,
सारा जीवन समर्पित कर भी, वह एक अफ़सोस बना,
माली भी विस्मित था, क्या परवरिश में खोट रही,
इतने सालों मेहनत की, फिर भी अपेक्षाओं पर चोट रही,
अब पेड़ दुखी, परिवार दुखी, क्या करे हाय माली,
शायद कुछ रंग और होते, न टूटी होतीं वो डालीं।
©सारिकात्रिपाठी
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Thanks for reading..!!
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