सच जानने के लिए समाचार सुन रही थी,
समाचारों से मैं, सच के टुकड़े चुन रही थी…
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एक की थी आग, तो दूसरे का पानी थी,
जलाने बुझाने की थी, पर वही कहानी थी,
दृष्टि दृष्टीकोण से सीमित थी, और,
आधी बात ही, सबसे पहले सुनानी थी,
गुणवत्ता समाचारों की यूँही घुन रही थी,
समाचारों से मैं, सच के टुकड़े चुन रही थी…
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सबका सच एक दूसरे से क्यूँ अलग था,
किस्सा वही था, नजरिया यूँ अलग था,
कहीं बचाव, कहीं हानि की कोशिश थी,
सही भी नहीं था कोई न ही गलत था,
साजिशों के जाल ख़बरें बुन रहीं थीं,
समाचारों से मैं, सच के टुकड़े चुन रही थी…
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बुलंद आवाजों से तथ्यों को मार रहे थे,
बहस में अजब बेतुकी बातें झाड़ रहे थे,
कहने को सब विद्वान इकठ्ठा किए थे,
पर मिलके सच्चाई के कपड़े फाड़ रहे थे,
शोर में से सच की कराहें, झुन रहीं थीं,
समाचारों से मैं, सच के टुकड़े चुन रही थी…
समाचारों से मैं, सच के टुकड़े चुन रही थी…
©सरिकात्रिपाठी
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पाठकों का अभिनंदन..!!